हैं किसी के लाल वो भी..
हैं किसी के लाल वो भी, सरहद पर हैं जो खड़े
दुश्मनों के सामने, सीना ताने जो अडे
मौत का ना डर उन्हे, ना डर उन्हे है खौफ का
हाथ मे हथियार,सर पर कफ़न बाँधे वो खड़े
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जिंदगी की ऐश सारी भूल के वो आ गये
देश की खातिर जो अपना शीश तक कटा गये
शौक थे उनके भी लेकिन छोड़ आये वो गली
चुकाना था जो कर्ज माँ के दुध का चुका गये
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जिन माओ के लाल खड़े सरहद पर रहते हैं
उन माओ के हर आँसू चीख चीख कर कहते है
जा रहा है वादा कर लौट कर आने का
वोह क्यों शाहादत की खातिर वादो को तोड़ा करते है
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नमन करो उन माओ को लाल जिन्होने गँवा दिये
क्यों राखी वाले हाथों ने अपने शीश कटा दिये
जब हमारा उन लोगो से रिश्ता कोई ना था
फ़िर क्यों उन लोगो ने हम पर इतने अहसान जता दिये
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हमरे उज्वल देश के भविष्य की पहचान है वो
अहसान मुझ पर कर रहे क्यों इतने महान है वो
मैं उन वीरों की याद मे अपना शीश झुकता हूँ
हिफाजत कर रहे मेरी तो मेरे भगवान हैं वो